कई दिनों से सोच रहे थे कि ,कुछ लिखते हैं.. लेकिन बस सोच रहे थे.. और फिर भूल जाते थे, कि क्या लिक्खें,.. एक दो बार ब्लॉग डैशबोर्ड ओपन भी किया..लेकिन फिर भी ख़यालों के परिंदों ने,एहसासों की छत पर उतर,शब्दों की शक़्ल में चहलक़दमी करने की हर गुज़ारिश नामंज़ूर कर दी..
आधे-एक घंटे तक किट-पिट भी करते रहे,. यहाँ की-बोर्ड की अक्षर-श्रृंखलाओं पर...लेकिन फिर भी कोई बात नहीं बनी..
..अच्छा, कई बार तो इन्टरनेट कनेक्शन ही इतना वीक रहा कि ..दिल ने हार मान ली के,मियाँ किसी और दिन लिखना,. आज कुछ और कर लो..
ख़ैर,! बात एक बहोत पुराने जुमले से शुरु करते हैं.. ,,"रात गयी बात गयी..
अक्सर ये बात ,अब्बू के मुँह से सुनते थे,(आज भी कभी न कभी उनके मुंह से ये बात सुनने को मिल ही जाती है) वो भी तब ,जब पिछली रात उन्होंने हमें किसी बात पर, जी भर के धिक्कारा होता और हमने चुपचाप तमाशबीं अम्मी की तरफ़ टूटे-दिल से देखते-देखते आँसू बहाये होते।
रोने-बिलखने के बाद, जब हम बिस्तर में होते,.और सबको लगता,कि हम सो चुके हैं..तो अम्मी,अब्बू से पूछतीं-क्यूँ आप इस नन्ही सी जान को इतने बड़े-बड़े डूब मरने वाले ताने मारते हैं..?
तो अब्बू, मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए..बड़े इत्मीनान से कहते थे...ताक़ि जब कभी लोग इसे किसी मुश्क़िल हालात में ताने मारें तो इसे ज़्यादा तकलीफ न हो..
हालाँकि ,अब्बू की उस ताने वाली बात से आज यहाँ कोई सिलसिला नहीं है..फिर भी उस वक़्त,अब्बू की ये बातें सुनकर... पता नहीं क्यूँ ?, पर हम बंद आखों से भी उनके चहरे पर बहोत कुछ देख लिया करते थे..और फिर, अगली सुबह अब्बू , बड़े एहतराम से हमसे माफ़ी भी माँगते ,..और कहते कि ,'अरे छोड़ो भी यार माफ़ कर दो अब.,रात गयी बात गयी..'
और ये सुनकर, हम मुस्कुराते हुए.. छत पर भाग जाते थे.. छत पर क्यूँ ?,. क्यूँकि बचपन की मेरी सबसे अजीज़ दोस्त,.मेरी पतंगें वहीँ तो होती थी...फिर ख़ुशी में कुछ देर पतंगें उड़ाते,..और सब भूल जाते।
ऐसा न जाने कितनी ही बार हुआ है..
..बचपन ऐसा ही होता है.,हमें मार भी बहोत आसानी से क़ुबूल होती है ,और प्यार भी..
,.पर जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं.,यही' आसानी से क़ुबूल करने वाली हमारी क़ाबिलियत, हम कब खो देते हैं... हमें पता भी नहीं चलता..
हालाँकि,.ऐसा नहीं है कि, मैंने इस क़ाबिलियत को पूरी तरह सँभाल के रखा है अभी तक..लेकिन फिर भी ठीक-ठाक हिस्सा बचाये रखा है, अभी भी..और दुआ है कि ,आगे भी बचाये रख सकूँ..
अब कई लोगों को मन ही मन ये लग रहा होगा कि ,फिर दिल टूटा क्या किसी बात पर.?;-)
तो नहीं,.वो तो कई साल पहले ही टूट चूका,. जैसे सबका टूटता है.
और वैसे भी दिल,.दिल होता है, कोई कपडे फ़ैलाने वाली अरगनी नहीं, जो...हर दूसरे-तीसरे महीने टूट जाये..
असल में हुआ कुछ यूँ,. कि , इधर दो तीन दिन पहले रात में तबियत थोड़ी खराब सी हुई.. तो नीद नहीं आ रही थी. समझ में नहीं आ रहा था के क्या करूँ?, किसे कॉल करूँ? इसलिए नहीं की तबियत खराब थी ,.बल्कि इसलिये के नींद नहीं आ रही थी...एंड समथिंग काइंड ऑफ़ मेंटल ब्लॉक,..
बड़ी देर तक छत पर चाँद को निहारते रहे..फिर कॉन्टेक्ट्स लिस्ट में नंबर्स को भी, कुछ देर तक स्क्रॉल किया...पर किसे कॉल करते?,इट वाज़ 1:36 am
..कुछ दोस्त हैं, जिनको लगा कि कॉल कर सकते हैं...जैसे राम,या सिम्मी।,फिर ख़याल आया कि , राम दिन भर की मीटिंग्स से थक के सो गए होंगे और सिम्मी की तबीयत पता नहीं अभी ठीक है भी, के नहीं, क्यूँकि इन दिनों उसे हेडेक हो रहे हैं...
फिर, सडनली गौरी का नंबर दिखा...तो लगा के हाँ! ये नालायक़ रात्रिचर है..इसे कॉल की जा सकती है...हालाँकि हम ये हमेशा से मानते रहे हैं..की फ़ोन इज़ द अल्टीमेट कॉज़ बिहाइंड सो मेनी मिसअंडरस्टैंडिंग्स,.एंड द मोस्ट डिस्टर्बिंग एलिमेंट इन द वर्ल्ड ,.. लेकिन असहाय दशा में क्या करते सो..हमने मैसेज किया।
रिप्लाई कुछ ऐसा था कि, सारा भय संकोच छू-मंतर हो गया.. और वो ये था कि ,."पिछले तीन दिनों से हम रोज़ शाम को सात बजे तुम्हें कॉल करते हैं...तो नंबर स्विच ऑफ बताता है.."
ये पढ़ के ख़ुशी भी हुई गुस्सा भी आयी..के मूर्ख किसी और टाइम पे नहीं कर पा रही थी..?
तो फिर उसका, वही जाना पहचाना सा जवाब मिला- " क्यों किसी और टाइम पर करें नहीं करेंगे! तुम अपने रूल्स नहीं बदल सकते तो हम क्यों बदलें..?
अब हम हँस रहे थे..
फिर हमें याद आया..
असल में आखिरी दफ़ा हमने और गौरी ने यही कोई, दो महीने पहले बात की थी ,और हमने उसे ये बताया था के हम फ़ोन अमूमन ऑफ ही रखते हैं..तो कभी कोई बात हो, तो जस्ट लीव मी सम टेक्स्ट,और रिप्लाई में उसने कहा था कि ,हम किसी को टेक्स्ट नहीं करते।:-)
..और फिर हमने एक दुसरे को साइलेंटली-एक्सेप्ट करते हुए फ़ोन रख दिए थे..फिर वो अपने कामों में बिजी हो गयी और हम अपने..
इस दौरान कभी-कभी किसी कॉमन फ्रेंड से उसका हाल-चाल हो जाता था..या फिर किसी सोशल मीडिया साइट पर उसकी एक्टिविटीज़ देख लिया करते थे..लेकिन, कॉल नहीं की थी..सिर्फ ये सोचकर कि सब ठीक है.. और सब ठीक है भी इंशा-अल्लाह..
..लेकिन मुझे कॉल कर लेनी चाहिए थी.. ये मैं मानता हूँ की,मेरी गलती है.. अनचाहे तौर पर ही सही.. पर गलती तो गलती होती है.. वो एक शेर भी तो है कुछ ऐसा ही.,"महफ़िल में पड़े देखे कुछ टूटे हुए आईने ,अब आपसे टूटे हों या आपने तोड़े हों..
..फिर क्या?, कुछ देर तो हम सब ही, हमेशा ही अपनी सफाई में कुछ तर्क पेश करते हैं..फिर आखिर में हार मान कर गुनाह क़ुबूल करते हैं..तब जब हमें ये एहसास हो के, हाँ! हमने गलती की है..या हमसे हुई है..
हमने भी वही किया..एक दो वाक्य बोले लेकिन..बस एक-दो ही..तीसरे में "सॉरी"
ये ,सबसे छोटा और सबसे असरदार वाक्य था..
और फिर अब,गौरी खुद ही हमें सही साबित करने लगी के नहीं भई,ऐसा कुछ नहीं है ठीक है..कोई बात नहीं हम भी तो तुम्हें मैसेज कर सकते थे..लेकिंन नहीं किये तो बस यूँ ही..खुन्नस में.. तुम भी तो इंसान ही हो ग़लतियाँ किस से नहीं होतीं?
..और फिर आखिर में उसने भी यही बात बोली..,
..,छोड़ो यार! ,तुम भी क्या अजीब हो?.... "रात-गयी बात-गयी.,
कॉफ़ी पियोगे कल?
...मेरे पैसे की?
***
..अगले दिन अल-सुबह ,गौरी,.घर के गेट पर थी,.अपनी उसी "गिलहरी वाली स्माइल" के साथ..उतनी सुबह कॉफ़ी तो कहीं मिली नहीं..हाँ हमने चाय साथ में पी...और जाते वक़्त हमको ये हिदायत भी दी कि , डॉक्टर को दिखा के शाम तक टेस्ट्स भी करवा लेना..
हालाँकि, हमने उसे बता दिया था के अभी मुश्किल है थोड़ी, पैसे कुछ कम पड़ रहे थे मेरे पास..
आधे घंटे बाद, बैंक-अकाउंट का नोटिफ़िकेशन मिला.."योर अकाउंट हैज़ बीन क्रेडिटेड बाय..."
..साथ ही एक और मैसेज मिला-
'तुम कहते हो न कि ,मैं तुम्हारे लिए माँ ,दीदी,दोस्त,यार सारे रिश्तों की तरह हूँ..तो ,गर तुम्हें माँ या दीदी ये पैसे देती तो तुम बिना कुछ बोले एक्सेप्ट करते न? ...तो ठीक वैसे ही..बिना कुछ बोले शाम तक डॉक्टर को दिखा के टेस्ट्स करवा लेना.. -गौरी"
और फिर,हमने भी जवाब दिया,.."एक्सेप्टेड,.. :-)
तो..जनाब, कुल मिलकर ...बात सिर्फ इतनी सी है,कि..चीज़ें जैसी हैं..उन्हें वैसी ही एक्सेप्ट करिये..वो आपके लिए आसान हो जाएँगी ..और अगर आप इस बात से इत्तफ़ाक़ रखते हैं.. तो ,याद कीजे की इस वक़्त किसी बात पर आप अटके तो नहीं पड़े हैं ?,अगर कोई बात नहीं है.,तो बहोत अच्छी बात है,और अगर कोई बात है..तो,.उठिये और,.
एक पल के लिए खुद से ये बात कहिये-
''रात-गयी, बात-गयी...
,और मिलिये उस शख़्स से चाय पर...क्या पता?, चाय की आखिरी घूँट तक पहुँचते-पहुँचते,.चाय की गर्माहट आपके रिश्तों में उतर जाय,.और आपके रिश्ते फिर से ताज़ा हो उठें,..
,. और अगर एक बार में गर्माहट पूरी तरह न उतर पाए तो,.निराश न होइएगा,.चाय रिश्तों से महँगी तो बिलकुल नहीं हो सकती...
..खुश रहें! उन्मुक्त रहें.!
ख़ुदा हाफ़िज़ !