Monday 22 September 2014

...lakadi ka boota

…काफ़ी  लम्बा  सन्नाटा  रहा.,,  आप लोगों से दोबारा  मुख़ातिब होने में,,लेकिन अच्छा है,क्योंकि इस सन्नाटे में काफी कुछ सुना हमने,, जो आपको ,,शायद थोड़ी देर के लिए ही सही ,.,पर कोई सुकूँ भरा एहसास दिल दे.,.,.,. 

कहाँ से शुरू करें  ???????
चलिए यहीं से शुरू करते हैं ,.,पंद्रह मिनट और कुछ सेकण्ड्स हुए हैं चाय पि कर लौटना हुआ है ,.चाय  दूकान पर विविध भारती  पर एक गीत बज रहा था ,.,जो हम सब जाने कितनी ही बार सुन और सुना  चुके  हैं। ,,,
तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे ,.,आवाज़ रफ़ी साहब की ,और  फिल्म का नाम पगला कहीं का,,.. पर जब ये गाना बजना शुरू हुआ तो ,,चाय दूकान के मालिक जिनकी तोंद उनकी बीइंग ह्यूमन की टीशर्ट को फाड़ कर बहार आ जाना चाहती थी ,,बड़े व्याकुल से दिखे ,और अचानक बेसाख्ता गाने के साथ-साथ गाने लगे.. ,तुम मुझे यूँ ,,  वाह!! वाह ,!!,क्या गाया  है ?.,भाई साहब ?हाँ लीजिये  चाय लीजे.…… 


उनके मुंह से अचानक से निकली इस  चाय धुन से हमे हंसी  सी आ गयी,…। 
सोचिये अगर इस गाने में रफ़ी साहब ने भी यूँ ही …चाय लेने की बात कही होती ,, तो कैसे लगते। .... ?????
 फिलहाल आप वहाँ  भ्रमित न हों। .... अभी हम  अपनी इस सबसे प्यारी दोस्त लालपरी,,…
के पास हैं,. ............. 
लालपरी कोई और नहीं हमारी इस पेन का पेट नेम  है ,,,,,,,,. 
इस लालपरी की खासियत है कि ,ये हमारे
  मन की  दवात में जितनी भी  लाल स्याही  होती है,,उसे पता नहीं कैसे
 शब्दों के साँचे में ढाल  देती है ,,और फिर ऐसा लगता है कि ,, इन शब्दों को मैं नहीं ये खुद ही गढ़ रही है,,और आहिस्ता आहिस्ता ये शब्द हम कागज़ की पेशानी पर उतारते जाते हैं-उतारते जाते हैं ,,,तब तक ....जब तक मन में घुली ये स्याही ,
सूख नहीं जाती है,,,,,,,,,…फिर कभी गीली होने तक की  तिथि तक। . 
आज यहाँ लिखी ये बातें जो ,,,हम इस कागज़ की क़िस्मत में लिख रहे वह हमारी हैं ,,या ,इस  लालपरी की,,

 बता पाना थोड़ा मुश्किल है,,,,की यह  हमारी रचना हैं या इसकी पैदाइश ,,,…………। 
अब देखिये न हम,,,कुछ और चाहते हैं पर ये है की कुछ और लिखवा जाने पर आमादा  है,,....... 

*****

आज पूरे इक्कीस रोज़ हो गए ,,,,.तुमने  एक मिस्ड कॉल तक नहीं की है ,,और अब तो उस मोड़ का वो पेड़ भी पूरा कट चुका ,,. 
जब तुम गए थे ,.,,तो बस उसकी पिछली रात को ही तो गिरा था वो,,
 तक़रीबन सात घंटे बारिश हुई थी  उस रोज़ ,,और रात को जब आंधी अंधी हो चली थी ,,तभी तो ये गिरा था ,,चरमराकर जब ज़ोर की आवाज़ करता हुआ ये धम्म से गिरा था ,,,तो मैं तुमसे और दुबक गयी थी,,और तुमने दुबका भी तो लिया था ,,,बिल्कुल वैसे जैसे किसी छोटे से पंछी  को उसके घोंसले में आसरा मिल गया हो ,,,। 


तब की  खुली आँख ,,,फिर कहाँ ?लगी थी ?और ऐसा लग रहा था ,,,,जैसे बादलों का पानी उनसे अब संभल नहीं रहा हो ,,,और सीधे मेरी आँखों में उतर आया  हो,,,,.  
और सुबह जब तुमने मेरी सूजी हुई आँखें देखीं थी,,,

 तो गले लगाकर लाख हिदायतें दी थी,,… ,धीरे चलना ,,कोई आवाज़ दे गेट पर तो आराम से जाना!!!

  दौड़ना नहीं,,!!!सामने वाले दरवाज़े के पास राखी मेज़ को बचाकर  जाना ,!!!,अभी परसों ही घुटने फोड़ लिए थे तुमने ,,मेरी गैर मौजूदगी में अपनी बेख़याली मत करना,,,!!!!

याद आये तो चाय पी लेना ,,,!!.फिर  भी आये तो याद करना ,,कि ,मैंने तुम्हें कितनी तकलीफें दी हैं देता हूँ,,… 
तुम इतना कह भी नहीं पाये थे ,कि हमने तुम्हारे मुंह  को ढक  लिया था , …

आपकी तकलीफें ही तो हमे आपके और ज़्यादा  क़रीब ले आती हैं,, ,,और आपकी तकलीफें होती क्या हैं?
मुताबिक़ आपके ………।   ?
यही न कि  रात  के दो बजे एक कॉफ़ी ,,,,,,,,,,दिन में सात -आठ बार चाय ………… । 
अरे !!
यह सारी  बातें तो मुझे ख़ुशी देती हैं ,,,यह सब  सुन आपने मेरा माथा चूमा था ,,, लगाते हुए कहा था ,,,,

अपना ख्याल रखना,. !!!  


और कितना ख़याल  रखूँ …………………… ?????
वह शीशम का पेड़ जो आपके जाने वाली रात में गिरा था ,,,,,,,,,,,पूरा कट के जा चुका  है,,,,,,,,,, पर अब तक तुम्हारी कोई खबर नहीं है................ 
क्यारी में लगे जूही के प्लांट ,,,,,,,,कल उसकी आखिरी कली भी खिल गयी है आज शाम तक वो भी मुरझा ही  जाएगी ,,,बाक़ी की चौबीस  का तो यही हश्र  हुआ ,,,.... . 


****

  
ये हैं नंदिनी ,,हमारी पड़ोसी  ,,,जिसका घर मेरे घर के सामने ही है,,,,और,,मेरी बचपन की दोस्त ,,,,,,,,,,,. 
कल इनकी शादी की  बीसवीं  साल गिरह थी,,,. 
और यह लाइने हमे उनके ,,,पति ,,,प्रेम ने सुनायी,,नंदिनी की डायरी  से पढ़ कर ,,,,,,. निनि  अपने माँ बाप की इकलौती संतान है....सो  प्रेम भी यहीँ  रहते हैं सबके साथ ,,,, निनि ,,,प्रेम,चाचा -चाची ,,,,. पूर्वी हॉस्टल में है कानपूर में,,,,बस,,ये है इनकी फैमिली।।
  
 और ,,हमने  आगे बढ़कर नंदिनी  और प्रेम को ,,, जिसे  प्यार से हम निनि ,,  बुलाते हैं …गले लगाया था। 
दोनों का प्यार और अपनापन देख ,,बहोत ख़ुशी हुई  थी ,,. 
और ख़ुशी दोगुनी हुई थी ,, क्योंकि ,,ये निनि ,,,का प्यार था ,,,वो निनि ,,,जिसने  बचपन में ,,हमारे  बर्थडे  पर   .,,हमारे लिए,,, अपनी गुल्लक से पैसे चुरा कर  ,,,हमारी खातिर रेड इंक वाली पेन खरीद कर हमे तोहफा दिया था ,,,साथ में दो महा लैक्टो टॉफियाँ ,,,……।   
जब सब लोग चले गए , तो ,,,,,,,,निनि ,,,हमारे पास आई थी ,,,और धीरे से कहा था ,,,भईया -भईया,,,ये आपके  लिए ,,,पर किसी से बताना नहीं,,,,,,,,,,,!!! 
गुल्लक  से निकाले   हैं ,,,मैंने,,,,,गोलापरकार  से ,,. 
और हमने  उसके लिए थोड़ा अफ़सोस किया था ,,,क्या निनि ?ये गन्दी बात है न…?आगे से नहीं करना !!
और हमने  उसे गले लगा लिया था ,,,,
फिर हमने दोनों टॉफियां ,, आराम से  छत पर  बैठ ,,,,कर खायी थी ,बिना चबाये,,,चूस कर,,,ताकि जल्दी ख़त्म न हो   ,,,,हमे लाल रंग की इंक में लिखना पसंद है,,,ये बात  सबसे पहले निनि ,,,को पता चली थी  ,,,,तब तो लिखते थे नहीं,,,,,पर रफ़  नोटबुक में ,,,,टिक मारा करते थे ,,,,और कभी कभी टीचर्स की साइन  कॉपी करते थे ,,,… अभी वो मेरी यादों की तिज़ोरी में है,,,. 
प्रेम न तो आर्मी में हैं ,,,,ना  हि ,,कोई वाइल्डलाइफ  फोटॉग्रफर ,,,एक कॉस्मेटिक कम्पनी  में मार्केटिंग  हेड हैं,. 

ऐसे में अक्सर  विदेश यात्राएं भी करनी पड़ती हैं … उन दिनों प्रेम खाड़ी के देशों में थे ,,,  और फिर वहां से,,,, कई और देशों की यात्राएं भी करनी पड़ीं,,,,बस कुछ ही घंटों  के अंतराल पर,,,कई बार  प्रेम ने,,,,यह सोच कर कॉल नहीं की,,,,के  ,,,,,

निनि  सो  रही होगी.... और उसकी नींद टूट जाएगी.... 
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बात पूरी नहीं हुई है ,,,,,………… 
बाइसवें  रोज़,,,,शाम के तीन बजे ,,,प्रेम किराए की गाडी से वापस आ पहुँचे थे,,,और गेट पर  आवाज़ दी थी,,,


नंदिनी !!!!!!!!!!!!!!!,। 


प्रेम की,,, आवाज़ सुन,,,,,,निनि,,,बावली ,,,,,,,,होकर दौड़ी थी.... गेट की ओर,,,और ,,,,प्रेम,,,की बाहों में झूल गयी थी,,,,,,,,,,,. 

प्रेम ने झुक कर निनि  के ,,घुटने  सहलाये थे ,,,,,जो निनि ,,,,गेट तक आते-आते ,,,,उस मेज़ से फ़ुड़वाती  हुई आई  थी ,,,,जिससे ऐहतियात  बरतने की हिदायत ,,,जाते-जाते ,,प्रेम निनि को दे गए ,थे,,… 

निनि  …,,,ने भीगी आँखों से देखा तो ,,,सामने,,ठेले  पर उसी ,,,पेड़ का  कटा ,,,आखिरी 

लकड़ी  का बूटा  ,,,


लदा  हुआ बढ़ई  के यहाँ  जा रहा था,. 

निनि  ,,,को ,,,लगा जैसे,, लकड़ी का वो आखिरी  बूटा ,,,निनि  से कह रहा हो ...

 देखा तुम्हारे प्रेम को तुम तक वापस लाने के बाद ही जा रहा हूँ,,,,.  

देखिये,,,,,!!

आपको निनि ,,की बातें  बताते -बताते,,,,,,,ध्यान  ही नहीं रहा कि ,,कब दो बज गए ?

सामने ,,,,निनि  के किचन की  लाइट  ऑन है,,,,और वो प्रेम की  खातिर ,,,कॉफ़ी  बना रही  है ……  



ये थी.,,,,,,,,,, हमारी  कुछ बातें ,,,,!!!

 जल्द ही फिर ,,,लौटूँगा ,,,,कुछ और बातों के साथ,,.   

………… थोड़ी देर ,,मुमकिन है हो जाए!!

,,पर तब तक आप अपना और अपने अपनों का ख्याल रखिये  . 

                                                                                                        ख़ुदा  हाफ़िज़ !!!