Monday 19 October 2015

..ये ज़िन्दगी कब तक राज़ी है.?

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..बातें तो इतनी थी यहाँ लिखना शुरू करने से पहले कि,ग़र सारी लिख सकते.,तो शायद आपको पढ़ने में महीनों लग जाते..लेकिन नहीं.!
वक़्त बड़ी चीज़ है.,और शौक़ तो खैर.!,बड़ी चीज़ है ही,इसलिए आपका ज़्यादा वक़्त नहीं लेंगे हम..और शौक़.,,.शौक़” अपना आप बरक़रार रखें..
आज यहाँ आपसे क्या बातें होंगी..ठीक-ठीक हमें भी नहीं पता.लेकिन एक बात का हमे अन्देशा है..कि,हमारी बातें शायद आज आपको उतनी भली न लगें...तो इसलिए हम पहले ही बता देना चाहते हैं.
आज हमारी बातों को आप दिल पर क़तई न लें.!,और ये तो बिलकुल भी न माने कि, इसका किसी भी वास्तविक घटना से कोई सम्बन्ध है.
हाँ,.! अगर किसी वास्तविक घटना के साथ इसकी समानता होती है,तो इसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा..
..अब आगे..,
ये वो बातें हैं जिन्हें सुनकर-पढ़कर..आप बड़े आराम से कह सकते हैं कि.,
अरे.,!!! ये सब बस बातें हैं.,बातें.!,ठीक है,.ऐसा होना भी चाहिए..लेकिन ऐसा उतनी अच्छी तरह मुमकिन नहीं है...जितनी अच्छी तरह आप सोच रहे हैं.
हाँ.!हाँ.! भई..! हम बिलकुल सहमत हैं आपसे..कि,ये बस हमारा ख़याली-ख़ुर्मा है.
इसीलिए तो.,हमने पहले ही कह दिया,.कि.,इसका किसी भी वास्तविक घटना के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है...:-)
अक्सर..हम लोगों के मुँह से एक बात सुनते हैं कि.,हर रिश्ते में एक दूरी होनी चाहिए..या फिर अधिक मिठाई में चींटियाँ लगती हैं..और अभी कुछ दिन हुए हमारी छोटी बहन तारीफ़” ने एक और पंचलाइन सुना दी हमें.,कि,भाईजान..! चाय में चीनी ज़्यादा होगी..,तो ब्लड-शुगर हो जाएगा..!
वाह..!...लोग तो लोग अब अपने घर के क़िरदार भी तकनीकी हो गए हैं.
जहाँपनाह” माफ़ करिए..!
लेकिन हम ऐसा ख़याल रखने वालों को तकनीकी ही समझते हैं..जो.,रिश्तों को चाय और चीनी का इतना सुन्दर-संगम बताते हुए भी उसमे ख़ामी खोज लेते हैं.
चाय और चीनी.,
लेकिन ये भी अजीब मसला है.,ब्लड-शुगर हो आदमी को.,और दूर..,चाय से चीनी को कर दिया जाता है...जहाँ अभी तक बेचारी चाय से तीन चम्मच मिलती थी..,अब डेढ़ में ही मिल के मन-मसोसना होता है.
...लोग भी न.,ये बताने में ज़रा भी देर नहीं लगाते कि.,अधिक मिठाई में चींटियाँ पड़ती हैं..लेकिन आज तलक किसी ने ये बताने की ज़हमत मोल नहीं ली..कि,चींटियाँ पड़ जाने के बाद उस मिठाई का क्या करना है..?
...और ख़ुदा के वास्ते अब ये मत कहने लगियेगा कि.,उन मिठाईयों को फेंक दें...क्यूँकि..,ये मिठाईयां रिश्तों की मिसाल में पेश की गयीं हैं...और रिश्ते फ़ेंकने की चीज़ नहीं होते..ये आप जानते ही होंगे..
खैर..!
हमारी समझ से ज़िन्दगी को लेकर.,ऐसे उदाहरणों को प्रतिबंधित कर देना चाहिए जो...नकारात्मक समझ या प्रभाव पैदा करते हों..अब कुछ बुद्धिजीवी लोग ये भी कह सकते हैं..कि,अरे ऐसा कैसे.?.,इस तरह तो आप एहसासों को बाँध रहे हैं....एकांगी कर रहे हैं.,हम सिर्फ अच्छा ही जाने ये कैसे हो सकता है..?बुरा भी पता होना चाहिए..!
हुज़ूर-ए-आला,.! हम ऐसा कुछ भी नहीं कह रहे..कि,आप सिर्फ़ काला ही जाने सफ़ेद  नहीं..!
..,अजी हमारी क्या मज़ाल.,?
जो हम आपको ऐसी बिना सिर-पैर की बातों के मशविरे दे सकें.?
मगर,.!आप शायद फिर इस ग़ुलाम’ की बातों पर थोड़ा कम ध्यान दे रहें हैं.
हुज़ूर” हमने शुरुआत में ही...इक़रारनामा” लिख दिया है...कि.,ये सब बस बातें हैं बातें...और कुछ नहीं..!
ऐसे में आप नाराज़ न हों हम पर...ज़रा मेहरबानी करें..!..रहम फ़रमायें,!
आइये थोड़ा.! और सुनिए हमे ..!
तो,.!
हमारा बस इतना कहना है..कि,रिश्ते नाप-तौल कर भला कैसे बनाये जा सकते हैं.,?या फिर जो नाप-तौल कर बनाये जाते हैं क्या वो रिश्ते ही हैं.?
मतलब..,हमें किसी से स्नेह है...तो हम उसे तीन किलो प्यार देंगे...वो भी निर्भर करता है.,कि.,वो भी हमें बदले में तीन किलो ही प्यार देता है या नहीं?
हाँ..!हाँ..! हँसिये नहीं भई.,!
...ये तो ,हमने अहतियाती तौर पर सोचा है..,नहीं तो मुश्किल और तकलीफ़ की बात तो ये है कि.,कहीं हमें या उसे ब्लड-शुगर हो गया तो?
...खामख्वा चीनी कम हो जाएगी..
दूसरी बात..,जहाँ देखो लोग पञ्चलाइन सुना देते हैं कि.,हमें हर रिश्ते में एक डिस्टेंस मेन्टेन करनी चाहिए..!
.,मतलब उचित---------दूरी” बनाये रखें..!
.,नहीं तो किसी भी वक़्त दुर्घटना हो सकती है.
मानो ये रिश्ते नहीं हमारी लखनऊ के पॉलिटेक्निक चौराहे से पत्रकारपुरम को जाते ऑटो रिक्शे हों..एक-दूसरे के आगे-पीछे..
अरे भाई.!.,रिश्ते आपके साथ चलना चाहते हैं..आपके आगे या पीछे भागना-दौड़ना  नहीं.
हमें तो बिलकुल नहीं भाती ये तकनीकी समझदारी वाली बातें.
लेकिन आज-कल ऐसा ही है...हर आदमी अपने साथ के लोगों से अपनी ज़िन्दगी में एक स्पेस”” माँगता है.
हम किसी ख़ास रिश्ते की बात नहीं कर रहे...ऐसा अक्सर हो रहा है..
जो तकलीफ़-देह है..
खैर.!
हमने किसी साथी के मुँह सुना कि.,भाईजान.! उन्हें हमारे रिश्ते में एक स्पेस की दरक़ार है.
और ये सुनते ही हमें हँसी सी आ गयी..कि.,आज-कल लोग क्या बड़ी-बड़ी फ़रमाइशें करते हैं.,कहाँ ये माँग कभी चाँद-तारों तक ही सीमित थी.
लेकिन अब वो भी लोगों को कम ही लग रहा है.,इसीलिए तो...अब,.मार्स या जुपिटर नहीं...सीधे...स्पेस”
भला वो अन्तरिक्ष” का करेंगे क्या?
हमने हमारे साथी से पूछा.
हमारी इस बेवकूफ़ी पर बड़ी ख़ुशी हुई उन्हें.,फ़िर.,बिना कुछ कहे चले गए...
..और हम सोचते रहे..कि,ये तो वैश्विक-विमर्श की बात है...मान ;लीजिये कल किसी सामर्थ्यवान शख्स से किसी ने ये माँग कर ली..और उसने समेट कर स्पेस सामने वाले की खिड़की पर चिपका दिया...तो.,हमारी आने वाली...पीढ़ी का क्या होगा.?..और बाक़ी चीज़ों में तो हम चलिए थोड़े बेपरवाह हो भी जाते हैं...पर मेरी छोटी बहन...तारीफ़’’....उसके ख़्वाबों का क्या होगा.?..उसे इसरो” जो जाना है..?
...अल्लाह..रहम करे..!

*****

दूरी..,ज़्यादा-नज़दीकी.,अधिक-मिठाई..और,ऐसे कई और शब्द हैं...जो अक्सर हमारे आस-पास मौजूद कई लोगों की ज़िन्दगी में एक वजह...बेवजह पैदा करते रहें हैं..
रिश्ते चीनी और मिठाई से कहीं ज़्यादा अहमियत रखते हैं..और अपनापन.,स्नेह.,प्रेम.,आत्मीयता.,लगाव..ये जितने भी एहसास हैं नाम से ही अलग हैं बाक़ी सबकी एक ही ख़ासियत है.,ये बड़े नायाब हैं..अनमोल हैं..
नहीं समझ आती ये बात हमें कि.,प्रेम भला कभी काफ़ी..या फिर पर्याप्त कैसे हो सकता है..?
या फिर अगर आपको लगता है कि.,ऐसा नहीं है...पर्याप्त होता है प्रेम”..
,तो फिर हम उन कुछ लोगों से एक सवाल करना चाहेंगे...जिन्होंने कभी किसी से कोई रिश्ता रखा रहा हो.,और आज वह रिश्ता.,वह शख्स आपके साथ नहीं हो...चाहे वह दोस्ती रही हो.,इश्क़-विश्क़ रहा हो.,या कुछ और,.
हम उसे किसी शब्द की ज़द में नहीं रखना चाहते..
तो क्या अब आपके दिल में उसके/उनके लिए वो जज़्बात पूरी.. तरह बीत-रीत चुके हैं..?
अगर.,आप अभी तक जवाब सोच रहे हैं..तो रहने दीजे..हमें इस जवाब की कोई बहोत ज़रुरत नहीं है...वो तो हम आपको...याद दिलाना चाहते थे...कि.,आप ऐसे नहीं हैं...जैसे आप इन दिनों हो गए हैं..
हाँ .,! अगर आप जवाब.,हाँ.! में देना चाहते थे या हैं...तो माफ़ करें!
...आप हमें बरगला रहे....और हमसे कहीं और ज़्यादा अपने आपको..
लेकिन ज़रा ठहरिये..,जनाब.!
अभी हमने असल सवाल तो पूछा ही नहीं आपसे.,,सवाल प्रेम की पर्याप्तता की परख़ का है...हालाँकि प्रेम परख-वरख की चीज़ नहीं है..लेकिन..!
तो पर्याप्तता का प्रश्न वर्तमान से होना चाहिए...न कि अतीत या अनंत से..
अतः.,अब आप ये बतायें.,क्या अभी वर्तमान में कोई ऐसा आपका प्रिय भाई-बन्धु या सखा-सनेही है..?,.जिसके सन्दर्भ में अब आप यह महसूस करते हैं कि.,आप उसे पर्याप्त प्रेम दे चुके हैं..और दो-एक दिन में आगे प्रेम देना बंद करने वाले हैं.!
क्या है कोई ऐसा ?
हमें तो नहीं लगता कि ऐसा कुछ होगा.
फिर भी...आप पूरी तरह आज़ाद हैं...सोचने और करने दोनों के लिए...
हमारा क्या है..?हम तो बस बातें करते हैं.
लेकिन हमारी ज़िन्दगी में अभी तक तो कोई भी ऐसा नहीं है...जिसे हम पर्याप्त प्रेम-स्नेह दे चुके हैं..और होगा भी नहीं क्यूँकि.,
हमारे चचाजान ने हमें बचपन से यही सिखलाया है
कि,.नवाब-साहेब.,!
कभी भी..खुदा के लिए,. ज़हन में यह ख़याल मत लाना कि., आपने किसी के लिए बहोत कुछ किया.,.क्यूँकि जिस वक़्त आपने अपने मन में ये ख़याल लाया होता है,.उसी वक़्त आपका सारा किया-कराया मिट्टी हो जाता है..
और दूसरा कि.,बस.! अब बहोत हुआ.,अब हम किसी के लिए इतना कुछ नहीं करेंगे...!
यह दूसरी बात कि.,बस,.! अब बहोत हुआ” चचा ने इस मक़सद में कहीं थीं कि.,अक्सर हम इस ख़याल से बुखार में होते थे कि.,नहीं.! उन्होंने हमारे ज़ज्बातों की हर बार अनदेखी की है...और अब और नहीं..!
लेकिन ऐसा सोचने के बाद भी हमें कोई ख़ासा सुकूँ या राहत नहीं हासिल होती थी..
इसलिए चचाजान हमें समझाते थे- नवाब.,! रिश्ते दीवारों पर बनी उन खिड़कियों
की तरह होते हैं..जिन्हें हम जब मर्ज़ी खोल दिया जब मर्ज़ी बंद कर दिया करते हैं..और उनकी अहमियत हमे भूल सी जाती है..लेकिन वही खिड़कियाँ..जब दीवार पर नहीं होतीं तो..हमें उनकी अहमियत मालूम होती है..लेकिन हममे से ज़्यादातर लोग...ऐसे ही होते हैं..मियाँ.,! जो चीज़ों की क़द्र कम ही कर पाते हैं..और खिड़कियों को भूल जाते हैं..

*****

चाचू...हमारी ख़ातिर क़ुरान.,गीता.,बाइबिल.,और सब कुछ हैं..या कहिये.,कि हमारी प्राइवेट बुक-शेल्फ़ हैं..
लेकिन नहीं..तो हमें डिस्टेंस मेन्टेन करनी है...
एक मिनट-एक मिनट आप कहीं ये तो नहीं समझ रहे.,कि.,हम मर्यादा को लांघने की बात कर रहे...
हाँ..! हो सकता है...लेकिन नहीं..! आप ऐसा कतई न सोचें...वो एक अलग मसला है...उस पर भी कभी कहीं कोई कोफ़्त हुई दिल में.,तो आपके पास ही आयेंगे...अपने दिल का दर्द सुनाने..
खैर.,!इस डिस्टेंस के मामले में हम ज़रा मुख्तलिफ़ नज़रिया रखते हैं..!
अरे.,! आप तो फिर हम पर अपनी निगाहें तिरछी करने लगे..!
देखिये.,! हम ठहरे ग़ुलाम आदमी हम पर ऐसी निगाह डालेंगे आप तो हम कहाँ कुछ कह पायेंगे..?
और फिर मेरी बातों को दिल पर न लीजेगा..!ये सब तो बस यूँ ही है...
हम्म.! तो बात कुछ यूँ है..,कि.,इस रिलेशन में डिस्टेंस से पहले हमने..डिस्टेंस में लर्निंग की बात सुनी थी..जिसमे लोग घर बैठे अपनी अधूरी या रुकी हुई पढ़ाई को पूरा करते थे..आज भी है...लोग करते ही हैं...अच्छा है...सहज है..सरल है कि, नहीं हमे नहीं पता.,!
तो जनाब ये डिस्टेंस लर्निंग में तो ठीक थी...लेकिन रिश्तों में डिस्टेंस..?
अब रिश्ते कोई कोर्स तो हैं नहीं (बकौल.,शिराज़..जो हमारे ही मोहल्ले के शर्मीले आशिक़ हैं.) कि.,चार साल में-पाँच साल में पूरे हो जाँय..ये तो उम्र-भर चलते रहते हैं...और अगर नहीं भी चलते रहते हैं...तो रहते तो ज़रूर ही हैं...
चलें-वलें भले ही न..
तो हम भला उन्हें ख़ुद से एक तय दूरी पर कैसे रख सकते हैं..?
हमें ग़र अपनी दादीजान के पैर दबाने हैं..तो हम फ़ोन पर तो ऐसा मुमकिन कर नहीं सकते..और चलिये फ़ोन की बात ही छोड़ें...उनके सामने भी रहकर..उनसे दो फ़ीट की दूरी पर भी बैठ कर.,क्या हम उनके पैर दबा सकते हैं..?
या फिर दादी क्या.,?हमें उस दौरान अपनी ज़ीस्त के उन तमाम तज़ुर्बों को सुना सकतीं हैं..?जो..वो हमे रोज़.,तब सुनाया करतीं हैं जब उनका नवाब” उनके पैर..अपनी गोद में लिए इस यक़ीन के साथ दबा रहा होता है..कि.,ये पैर मेरी दादीजान के हैं...वो दादीजान जो मेरी ख़ातिर ख़ुदा हैं..
हमें ग़र अपने अब्बू की चप्पलें उनके पैरों में पहनानी हैं..तब जब.,वो शाम को बाज़ार के लिए निकल रहे हों...तो हम इसमें एक डिस्टेंस संजोयें..?
हमें ग़र अपनी बहन का ख़याल तब रखना है,.जब उसे पिछले पाँच दिनों से बुख़ार हो...तो हम यह बात ध्यान में रखेंगे..कि..हमे डिस्टेंस रखनी है..?
...माफ़ कीजियेगा साहब..!.,हमारी बहन..हमारे भाई.,हमारे चाचू.,हमारी दादी...से बढ़कर नहीं हो सकती ये डिस्टेंस” या स्पेस” हमारे लिए...
और क्या-क्या कहें.,हुज़ूर.?,
हमारी परवरिश हमारे अपनों ने उन हाथों से की है...जिन्हें डिस्टेंस शब्द का मतलब भी नहीं पता...
और शायद यही वो फ़र्क है.,जो हममें और आप में..दिख रहा है..,कि.,
आप डिस्टेंस की वक़ालत कर रहे हैं...और हम सेंटीमेन्ट्स की...
अभी कुछ दिन पहले ही हमने किसी कवि या शायर जो भी हों..उनकी कुछ लाइने पढ़ीं..कि.,एक बादल और एक बादल मिलकर एक ही बादल’ तो होते हैं..,एक नदी और एक नदी मिलकर एक नदी’ ही तो बनती है..तो फिर.,हम और तुम मिलकर दो’ क्यूँ?????
ये....कुछ लाइने थीं...जो हमे बहोत कुछ बता गयीं..
आप ख़ुद सोचें न.?.,कि क्या हमारे अम्मी-अब्बू ने हमारी परवरिश कभी एक फ़ासला रखते हुए की .,?
कि.,नहीं इतना ही प्यार दो...नहीं तो ये बिगड़ जाएगा..!
क्या हुआ.?..हम पर हँसी आ गयी कि.,ये हम क्या पूछ बैठे?
तो साहब...बच्चे लाड-दुलार से नहीं लापरवाही से बिगड़ते हैं...और आपके हिसाब से उनकी हर ख्वाहिश पूरी करना लाड-दुलार है....नहीं जनाब..!
इसे असल में लापरवाही कहते हैं..जिसमे आप बस किसी की ज़िद पूरी करते हैं...ज़रूरते नहीं..
और यहीं आप हमारी समझ से थोड़े ग़लत हो जाते हैं...
..फ़िलहाल.,!अब इस डिस्टेंस की प्रजेंस को थोड़ा इग्नोरेंस के हवाले करते हैं...और एक दूसरे मसले पर आते हैं..

*****

..नाराज़गी”
..ये भी एक शब्द है जिसकी वजह से हम अक्सर लोगों को किसी पर बिफ़रते देखते हैं..
.,किसी ने हमारी फ़ोन कॉल नहीं रिसीव की.,उस पर नाराज़गी..
.,किसी ने हमें बाद में कॉल-बैक नहीं की,.!,उस पर नाराज़गी..
.,किसी ने हमें इगनोर कर दिया.!,उस पर नाराज़गी..
.,किसी ने हमें उतना नहीं समझा जितना हम उसे समझते हैं,!,उस पर नाराज़गी..
.,किसी ने हमे सॉरी नहीं बोला.,!उस पर नाराज़गी..
.,किसी ने........अरे बस करिए साहब..!..,क्या चाहते हैं कि.,हम सब कुछ लिख दें यहाँ और फिर लोगों को हमसे भी हो जाए...,,,,,,,नाराज़गी..!
तो हुज़ूर...हाल कम-ओ-बेश कुछ ऐसा ही है...कि.,लोग राज़ी कम...और नाराज़ ज्यादा हैं.
अब कुछ लोग इतना पढ़ कर शायद मन ही मन ये कह रहे हों..!
कि.,अब इसमें भला क्या तकलीफ़ हो गयी आपको..?..ये राज़ी होना.,नाराज़ होना तो चलता रहता है..लाइफ है भाई..! इसी को तो कहते हैं जीवन...
हाँ.,!हाँ..!
एक दम सही सरकार.,!
हमारी तो ऑंखें खोल दी आपने.!
लेकिन सिर्फ यही लाइफ हो जाय.,! तो.,कैसा रहेगा..?
नहीं समझे .,!?
ज़रा ठरिये..!अभी समझ जायेंगे आप..!
तो जनाब हम नाराज़ होने के विपक्ष में नहीं हैं.!
हम सिर्फ “नाराज़-रहने” के विपक्ष में हैं...
रहने” से हमारा मतलब...एक लम्बे समय तक चलने वाली नाराज़गी..
आपको एक छोटा सा वाक़िया सुनाते हैं...बात हाई-स्कूल की है...हमारी क्लास में हमारे एक अभिन्न मित्र थे...अभिषेक पाण्डेय..जो अभी भी हमारे वैसे ही मित्र हैं.
किसी दिन किसी बात पर हमारी बहस हो गयी और बहस मन मुटाव तक जा पहुँची.
नाराज़गी दिखाने का जो शाश्वत तरीका है...वो ये है..कि.,आप जिससे नाराज़ हैं...उसे इगनोरे करें....उससे कोई बात न करें.,या फिर करें तो बस हूँ-हाँ तक ही..!
ताकि..,उसे कुछ एहसास-वहसास हो..और वो आपसे पूछे या और स्पष्ट कहें कि.,क्षमा प्रार्थना करे..!
तो हमने भी लगभग वैसा ही किया.,हालाँकि यह सत्य बात है..कि हमने नाराज़गी जताई थी...लेकिन इस आशा-प्रत्याशा से विरक्त..,कि.,वह हमसे माफ़ी-वाफी माँगे..!
क्यूँकि.,हमें कभी इस बात की चाहत न तो हुई है और न ही होगी कि.,जिन्हें हमने प्रेम किया हो..,वो हमसे माफ़ी माँगें और हम उन्हें माफ़ी दे कर यह महसूस करें कि.,हम कितने सही और वो कितने गलत थे.!?
हाँ..! किसी की कोई हरक़त ग़र तकलीफ़ दे जाती है.,..तो बस इतनी ही ख्वाहिश होती है..,कि.,वो बस वापस आ जाए मेरे पास-मेरे साथ रहे भर...
बस...और कुछ नहीं..!
और भला किस बात की माफ़ी.,?हम कोई ग़लती करें.,हमारे किसी अजीज़ से कोई ग़लती हो जाय.,एक ही बात है.
तो इस हिसाब से माफ़ी भी कोई माँग ले...एक ही बात है..
और...मियाँ!!...ये जो चाहत है न..,कि जिसने ग़लती की है,उसे अपनी ग़लती का एहसास भी हो...इसलिए हम नाराज़ रहेंगे..
तो हुज़ूर छोड़ भी दीजिये ये अला-नाहक़ की अठ्न्नी वाली अना..अब तो ये बाज़ार में चलती भी नहीं..!
अब हमारे छोटे भाई विकू” को ही ले लीजिये...बेमुरौव्वत” पर हमें एक बार किसी मासूम सी वजह के चलते बड़ी कोफ़्त हुई कि.,इसे इतना भी एहसास नहीं की इसने हमें तकलीफ़ पहुँचायी..!
तो क्या हम उससे नाराज़ हैं आज..?
रत्ती भर भी नहीं...!
और पगले की मासूमियत तो देखो आज तक एहसास नहीं हुआ..,उसे..!
हाँ.,!बता दिया था हमने.,कि विकू’ आपकी एक बात हमें अच्छी नहीं लगी...लेकिन कौन सी बात ये नहीं बताई थी..और सच कहें तो.,अब हमें भी कुछ ठीक से याद नहीं.!,
आज भी कभी-कभी पूँछता है...अच्छा भैया.,!वो बात कौन सी थी.,?जिससे आप हम पर नाराज़ हुए थे...कुछ घंटों के लिये?
..,और फिर हम भी हँसते हैं...वो भी...
..,क्या करें.?..ग़र नहीं है उसे एहसास?
अब इस वजह से उससे बात करनी तो.,बंद नहीं कर सकते न?
और ग़र बात करनी बंद कर भी दी..,तो कितने दिन नहीं करेंगे..?
दो...चार..पाँच..आठ...ग्यारह..या फिर महीने दो महीने..?
नहीं.,!नही.,! ये तो हम न कर पायेंगे..!
और दिल से कह रहे हम...एक वक़्त के बाद ये गिले-शिकवे...नज़र ही नहीं आते..दूर-दूर तलक...सिर्फ़ और सिर्फ़ सुकून दिखता है..सुकून..
आज भी ग़र.,माफ़ी जैसे किसी मसले का ज़िक्र होता है...तो अभिषेक और अमन का ही ख़याल आता है..
खैर.,! तो हम अभिषेक के बारे में बता रहे थे..,फिर हम अभिषेक से दूर-दूर ही रहे..
दो-चार दिन बाद...जब हम अपने स्कूल के साइकिल स्टैंड के पास खड़े स्कूल गेट के खुलने का इंतज़ार कर रहे थे..,तो यकायक..अभिषेक हमारे सामने आके खड़े हो गए..
अपने चहरे पर एक प्रायश्चित-मिश्रित-मुस्कान के साथ..जिसमें आत्मग्लानि की आभा झलक रही थी..
अभिषेक ने दो-क्षण हमें देखने के पश्चात् हमसे कुछ पूछा था..?,ऐसा कुछ जिसे आज भी याद कर हमें उतनी ही ग्लानि महसूस होती है...जितनी तब हुई थी..
अभिषेक ने कहा था..,..अरे,.! यार” अब क्या ज़िन्दगी” भर नाराज़ ही रहेगा..!,.मान जा यार..!!
और ये शब्द.,उस क्षण मानो.,!मेरे न सिर्फ.,ह्रदय को...मन-मश्तिष्क को भी बेध से गए थे.
अभिषेक को दौड़कर गले लगाते हुए...हमने मन ही मन ये सोच लिया था कि.,आज के बाद कभी किसी से नाराज़ नहीं होना है..और ग़र हुए भी तो...इतनी आसानी से राज़ी होना है कि.,सामने वाले को भी अचरज़ हो कि.,हम नाराज़ थे भी या नहीं..?
खैर !.. ये तो हमारी बातें हैं....पर अब हर कोई ऐसा क्यूँ सोचे या मान ले.?
..नाराज़ होना लोग अपना अधिकार समझते हैं.
ठीक है हुज़ूर,.! माना हमने..!
.,लेकिन ये क्या कि आप अपनी इस अधिकार की कार में सवार हो...सामने वाले की आँखों की नींद को..कुचलते जा रहे हैं..कुचलते जा रहे हैं..?
..क्या..?.......क़ुसूर क्या है उनका ..?
..यही न,.?.. कि.,उन्होंने आपकी भावनाओं की सड़क पर किनारे कहीं अपनी
ना-समझी की मासूम सी नींद बिछा रखी थी..?
...माफ़ कीजियेगा..! हुज़ूर-ए-आला...!
मगर उनकीं आँखों में क़त्ल की गयी नींदों में...,ख़ाब शायद आप ही के होते थे..
एक बार फ़िर..माफ़ी माँगते हैं..!
ग़र किसीका” दिल दुखाया है हमने.!.और ये माफ़ी इसलिए माँग रहे.,क्यूंकि..,किसी को दुःख-तकलीफ़ देने का हक़ न तो है हमें..और न ही हम चाहते हैं...
लेकिन हमारी एक और बात पर थोड़ा ध्यान दीजेगा.,.अगर हमारी इस बात से आपका दिल दुखा है..
तो...समझ लीजियेगा कि,इस वक़्त किसी का दिल आपकी बदौलत भी दुःख रहा है...या दुःखा होगा...
रिश्ते बड़ी क़िस्मत से मिलते हैं..,जनाब.,.इन्हें नाराज़गी में ज़ाया न करें..!
क्या हुआ? ग़र किसी ने..नहीं समझा आपको,?
क्या हुआ? ग़र आपने..बहोत समझा किसी को,?
क्या हुआ? ग़र किसी ने बदले में यह नहीं पूछा कि, आप कैसे हैं?
क्या हुआ? ग़र लोगों को आपसे शिक़ायतें हैं?
...हमें नहीं लगता यह इतनी भी.,कोई” बड़ी बात है.,
....थोड़ा मुश्किल ज़रूर है...पर आसान भी बहोत है...नाराज़ न रहना...
.....अक्सर हम देखते हैं कि.,हमें जिनकी बदौलत कोई तकलीफ़ होती है..,हम उनसे इस फ़िराक में दूर हो जाते हैं..कि.,उनसे दूर रहने पर वो तकलीफ़ धीरे-धीरे कम हो जाएगी...इस वजह से हम उनका साथ तो खो ही देते हैं..साथ-साथ वो तकलीफ़ें...रह-रह कर एक टीस सी उभार देती हैं सीने में कहीं..,,तो क्यूँ न उनके साथ रहते हुए उस तकलीफ़ को जिया जाय..?..इस तरह कम-स-कम उनका पूरा या अधूरा कुछ तो साथ मिलेगा..
.......अब देखिये न नज़ीर” कितनी देर से हमें तंग कर रही है..
बार-बार फ़ोन देकर एक ही बात कह रही है...चाचू दिखा दो..!..,चाचू दिखा दो..!
क्या..?.फ़ोन में काऊ की इमेज..!
अभी थोड़ी देर पहले कुछ और फ़रमाइश थी इन साहबज़ादी की.,चाचू पिला दो.!.,चाचू पिला दो..!
क्या?..चाय.!
उससे पहले...बार-बार हम अपनी आँखें मूँद रहे थे...और ये ऑंखें खुलवाने के लिए मेरी पलकें ज़बरन खोल रहीं थीं..
और उसके पहले हमने वापस घर जाने का नाटक किया तो दौड़ कर हमारे क़दमों में सो जा रहीं थीं...रोते हुए..
यह वही नज़ीर” हैं....जिनसे हमारी मुलाक़ात अभी बस कुछ ही घंटों पहले हुई है..और हम इनके प्यारे चाचू बन गए हैं...
हालाँकि..!ये अभी बस तीन साल की ही हैं...और इन्होने हमें ऐसा कुछ कहा भी नहीं है..कि.,चाचू आप मेरे सबसे अच्छे चाचू हैं..फिर भी हम मान लेते हैं..
क्यूँकि...इसमें हमें कोई हर्ज़ नहीं दिख रहा..
लेकिन कल..और कल क्यूँ.,?.,अभी., यहाँ से हमारे जाने के बाद नज़ीर को...चाचू बस कुछ और देर याद रहेंगे...बस..
फिर नज़ीर..किसी और को तंग करेंगी...
और...सबसे अहम् बात...कल को हम फ़ोन करेंगे...तो मुमकिन है...नज़ीर हमारी कॉल रिसीव न कर पायें..या न करें...!
...हम मैसेज करें., तो शायद कोई रिप्लाई भी न करें..!
..और सौ बातों की एक बात...नज़ीर को ज़रा भी अहसास नहीं होगा कि.,उनके चाचू को उनकी इन हरक़तों से बुरा भी लग सकता है..,
तो क्या हम अपनी नज़ीर...से नाराज़ हो जाँय..?
आप भी सोच रहे होंगे..कि,अजीब हाल है.!..अब किसी बच्चे से क्या नाराज़गी..?
...हम भी कुछ ऐसा ही मानते हैं जनाब..!
 किसी को...स्नेह देना है...प्रेम करना है...तो बच्चों से सीख लें...!
वो हर हाल में खुश रहते हैं...उन्हें आपसे कभी कोई बड़ी शिक़ायत नहीं होती..और ग़र हुई भी तो...उन्हें मनाने के लिए...पाँच रुपये वाली मिल्कीबार चौकलेट ही बहोत है...
इस बार भूल गए थे..,नज़ीर के लिए कुछ ले नहीं आ पाये थे..
.,पर अगली बार पक्का कुछ ले आयेंगे...अपनी गुड़िया के लिए...
अरे..! आप अभी तक सोच रहे हैं..?
ख़ुदा-खैर करे...!
देखिये अपने सेल-फ़ोन पर...किसी ने कोई मैसेज-वैसेज या कॉल-वॉल तो नहीं की...?
क्या.,?? नहीं की.?
अरे.,!वाह .!
यही अच्छा मौका है...आप खुद कर लें..!.और अगर कॉल नहीं रिसीव हो.,तो एक  मेसेज ही ड्रॉप कर दें.!
अब लिखना क्या है..?.ये तो हम नहीं बता सकते..,वह आप तय कर लें...
,लेकिन मेहरबानी कर मेरे आक़ा...रिप्लाई न मिले...तो नाराज़ मत हो जाना..!
..
...
अच्छा तो अब हमे इज़ाज़त दें...
..आपका ज़्यादा वक़्त लिया हो..,और हमारी किसी बेवजह की बात से आपका दिल दुःखा हो...तो.,मेहरबानी कर हमें माफ़ करियेगा...बड़ी मेहरबानी होगी..!
…एक और बात,यदि कुछ शब्द दोष हुए हों.,तो पुनः माफ़ करियेगा ,.!
अपना ख़याल रखें और ख़ुश रहें..खुश रखें..
और किसी” से..,किसी” से भी कोई नाराज़गी न रखें...
...क्यूँकि नहीं पता...ये ज़िन्दगी कब तक राज़ी है...?
...
...

..ख़ुदा-हाफ़िज़