Wednesday 23 April 2014

ek cup coffee...

आज रात में अचानक से नींद टूट गयी..
समय देखा तो एक बज कर.,तेरह मिनट हो रहे थे,.
पास वाले बिस्तर पर नज़र डाली तो मेरे मित्र निश्चेत मुद्रा में,,
दो तकियों के साथ बड़े ही निर्विकार भाव से सो रहे थे,,,थोड़ी देर यूँ ही हम बिस्तर  पर पड़े रहे....और अपनी साँसों पर गौर करते रहे,जो एक फासले पर आ रही थी .,,जा रही थी,. 
सोचा उठ जाऊं प्यास सी लगी है,,पानी गर्म हो गया होगा बोतल का,,,तो वाटर कूलर से ले आते हैं.... अभी उसमे कुछ ठंडा  होगा ,.. 


बॉटल ली ,,,जाकर पानी ले आये ,,रूम के बहार रुक कर देखा तो पूरा हॉस्टल सो रहा है,,,
वहाँ नीचे बीच में गोलम्बर में पोल में लगी लाइट जल रही थी ,,रोज की तरह.
इसे गोलम्बर क्यों कहते हैं नहीं पता ,,शायद इसके चारों ओर गोल चबूतरा है और बीच में लगे पोल में जलती हुई लाइट ,,,जिससे लगता है … जैसे अम्बर  से रौशनी बिखेर रही है.... इसीलिए लोग कहते होंगे ,,,राघवेन्द्र जी के मुंह से ही कई बार ये शब्द सुना है.,


अब आसमान में नज़र दौड़ाई तो ,,चाँद नज़र आया ,,लगभग आधा पर पूरा चमकीला ,.,. 
थोड़ी दूर पर एक तारा भी है ,,शायद एक मीटर की दूरी पर ,,,यहाँ से तो यही लग रहा है.... बाक़ी होगा वो जाने कितने प्रकाशवर्ष  की दूरी पर ,.,
चाँद को देखा तो मेरी बहन रानो की याद आयी,,,
ऐसे लगा वो सो रही है ,,आँखें  बन्द  हैं ,,चश्मा टेबल पर रखा है ,,
उसकी पानी की बॉटल भी वहीँ रखी  है ,,,जिसमे दो चार घूँट पानी भी होगा ,,,रात में कहीं नींद टूटी और पानी पीने  का मन हुआ ,,तो कहाँ जायेगी मेरी गुड़िया,,?

उसे अकेले सोते नहीं बनता तो बड़ी दी उसके साथ सोतीं हैं ,,,आज गुस्सा गयी थी ,,मेरा नंबर बिजी था ,,और मेरी रानो को कतई बर्दाश्त नहीं के वो अपने भईया को कॉल करे और भईया  कहीं और बतिया रहें हों ,. 

उसे एक छत्र  आधिपत्य चाहिए होता है हम पर,.,और क्यों नहीं हम उसके इकलौते  भाई  हैं,,,,
और वो मेरी सबसे अच्छी प्यारी बहन है,,,अभी ज़्यादा उसके बारे में बात नहीं करेंगे ,,नहीं तो कहीं मेरी गुड़िया की नींद न टूट जाए ,.,
मेरी प्यारी गुड़िया,,,सो जाओ,,बेटे !,,,भईया  हैं.
ये सोच कर फिर रूम में आ गए ,,अब अगर किसी चीज़ की याद आ रही थी तो  वो थी,,,
 
मेरी ,,,,एक कप कॉफ़ी ,.,.,
इतने दिनों तक कोई अगर बिना शर्त मेरे साथ रहा तो वो थी मेरी,,,,,,,,,,कॉफ़ी ''


इतने सालों से रूम लेकर बाहर  रहना हो रहा है ,,बस  दो  सालों से हॉस्टल लिया था ,,,अच्छा है 
पर कॉफ़ी का साथ छूट गया ,,,

हॉस्टल में कॉफ़ी बनाने का कोई उपकरण नहीं है ,,न बर्तन न गैस चूल्हा ,,न ही दूध गरम करने का बर्तन,.,
और एक और अहम चीज़ "कॉफ़ी मग 


मेरा शुरू से मन था के जब मेरा रूम होगा तो ,,मेरे रूम में एक कोने में मेरी स्टडी टेबल होगी ,,साफ़ सुथरी,,जिस पर एक टेबल लैंप भी होगी,,मैं कुछ लिखता पढता रहूँगा ,,रात के दो तीन बज रहे होंगे ,,और मेरी टेबल पर ही पास में एक कॉफ़ी मग रखा होगा ,,जिसमे से धुएं सी इक खुशबू उड़ रही होगी,,


कभी कभी हम पढ़ते लिखते इतने मशगूल होंगे की पीना ही भूल जाएंगे ,,,और वो ठंडी हो जायेगी ,,,फिर हम हँस कर अफ़सोस करते हुए बोलेंगे  ,,,,अरे यार फिर ठंडी हो गयी ,,,,,तुम ?!

और पी  लिया करेंगे ,,,

ऐसा हुआ  भी कई बार,,२००९-२०१२ तक तो कई रातों में ,.,नहीं तो हम जनाब सुबह जल्दी उठने की फ़िराक में जल्दी सो जाते थे ,,,
सुबह ४ ,,४:३० पर उठना,,फ्रेश होना ,,नहाना ,अस्सी घाट वॉक पर जाना ,,,,ऐसे करते करते तीन साल गुज़र गए ,,,,,मेरी कॉफ़ी मेरे साथ रही ,,,


मेरी कॉफ़ी मेरे लिए एक दोस्त हुआ करती थी ,.,मेरा वो दोस्त जो मेरे गले से उतर कर ,,मेरे अंदर मौजूद सारे शिकवों को सोख लिया करती थी ,,,जब भी किसी मुश्किल में होते तो मेरी उँगलियों में किसी कप के साथ आकर कहती थी ,,,,अरे ठीक है यार,.,सब बढियां हो जाएगा ,.,बस थोड़ा धीरज धरो ,.,हिम्मत से काम लो,,,और जैसे जैसे वो मेरे गले से नीचे उतरती थी ,.,अपनी ऊष्मा से सभी तकलीफों,,उदासियों ,,भाप बना कर उड़ा देती थी ,,,कहाँ ,?,,नहीं पता ,,,

चाय कॉफ़ी की आदत ज़्यादा बढ़ी बारहवीं क्लास में ,,जब मेरा रूम मेर मन माफ़िक़ बहोत अच्छा था ,,,और हम बहोत सुकून से रहते थे उसमे,,, उन्ही दिनों मेरी तबियत का बिगड़ना अपनी शिद्दत से हो रहा था ,,,जब कुछ समझ में नहीं आता तो,,,भरी दुपहरी में,, अपने रूम से निकलते और एक दो किलोमीटर की दूरी पर चाय की दुकान थी ,,,वहाँ पहुँचते और दस पाँच  सेकंड में विनय चाय ले आता ,,,भईया  चाय,,,!


चाय दूकान पर रिक्शे वालों की ज़मात  हुआ करती थी ,,,,,,वहाँ  हम किनारे बिलकुल शाँत  बैठे रहते ,,,उनकी बातें भी सुनते ,,,जो सुन पाते,, बाक़ी हम धीरे -धीर अपनी चाय पीते इस ख्याल के साथ के जैसे वो मेरी हमराज़ है,,,,
हमराज़ इसलिए की घर पर माँ को बताने से थोड़ा बचते थे ,,,,वो परेशान हो जाती थीं,,,ऐसे में मेरी चाय ही मेरी हमराज़ थी ,,,थोड़ी रहत मिल जाया करती थी ,,,
चाय के साथ तो आज भी कमोबेश वैसा ही रिश्ता है ,,,,हाँ,,! कॉफ़ी का किसा अब वैसा नहीं रहा ,,. 
इस किस्से में बदलाव आया ,,,,


हम हॉस्टल  में आ गए और यहाँ का सूरत-ए -हाल,,,,ऐसा है नहीं के हम अपनी कॉफ़ी पीते ,,,
लेकिन फिर ये किस्सा अपने दोहराये जाने की दशाएं बना रहा है ,,,

बमुश्किल एक  डेढ़ महीने और ,,,फिर हॉस्टल छोड़ना है,,,
ये रूम ,,,ये कॉरीडोर ,,ये सींढ़ियाँ ,,,बहोत कुछ बहोत कुछ ,,,,,,



फिर एक रूम होगा ,,,कोने  में मेरी स्टडी टेबल होगी ,,,जिस पर यही टेबल लैम्प होगा जिसकी रौशनी में अभी हम ये ख्याल इस कागज़ हवाले कर रहे हैं,,और यही हम जो वहाँ रखी  उस कुर्सी  पर ,,,,इसी तरह कोई ख्याल या मलाल किसी कागज़ की पेशानी पर उतार रहे होंगे,,,

खैर आज ही हमारे एक प्रोफेसर मोहंती सर'',,,हमे बतला रहे थे ,,,
"यू नेवर नो ",,,ज़िंदगी में क्या मिलेगा ???
बस करने भर का तुम्हारा ज़ोर है,,सो करते रहो,,,रुको नहीं,,छोटा बड़ा कुछ तो मिलेगा,,सब बड़ा ही नहीं ,,,कर सकते ,,,
इसका मतलब ये नही के बाक़ी चीज़ों की अहमियत ही नहीं है,,,हाँ कोशिश ज़रूर करो,,,!
बहोत ख़ुशी हुई,,,सर की बातें सुन कर ,,,हमेशा की तरह ,,,. 



इन दो सालों में कितना कुछ मिला,,,,हिसाब करने बैठूंगा तो शायद दो और साल लग जाएंगे,,,
खैर मेरी खिड़की से बाहर हलकी रौशनी दिख रही है,,,,उसका एक कांच हम्हीं  से टूट गया था,,,,तो उस पर पेंट नहीं हुआ है,,,,सो पारदर्शी है ,,,,एन.डी. हॉस्टल के गेट  की तरफ  कुछ रौशनी है,,,,शायद चैनल गेट के पास की लाइट जल रही है,,,और हॉस्टल की ही छत पर एक मोर बोल रहा है,,, जो रोज़ ही बैठता है,,,,,और  बोलता भी है,,,हमे फिर से एक बार रानो की याद आयी,, वो खुश हो जाती है मोर की आवाज़ सुन कर,,, 


अब सो जाना चाहिए,,,,,,फिर सुबह होगी ,,,,,,मुलायम जी,,,,राकेश जी,,,,सज्ज़ाद जी,,,,,,,कैंटीन ,,,मेस,,,डिपार्टमेंट,,,,सब  होंगे,,,,,,,वैसे ही जैसे रोज़ हुआ करते है,,,,वैसे जैसे कभी-कभी  नहीं भी हुआ करते हैं,,,,

हलकी रौशनी अभी भी दिख रही है वहाँ ,,,,,,,पर अब इन ख्यालों से कुछ अजीब सा महसूस हो रहा,,,,
चीज़ेँ.... हमेशा के लिए आपके पास नहीं आतीं,,,,,एक वक़्त के लिए वो आपके साथ होंगी,,,आपके पास होंगी ,,,और जब वो वक़्त पूरा हो जाएगा ,,,,तो वो बहोत ,,,,,,धीरे-धीरे या हो सकता है के,,,,,अचानक  से आपसे दूर हो जायें ,,,,
लेकिन इन सारी चीज़ों में,,,,,,,एक चीज़ हमेशा आपके साथ होती है,,,,,हमेशा आपके पास होती है,,,और वो है....उन लम्हों की यादें,,. जो हमेशा आपके साथ,,, होंगी पास होंगी,,,और आपको बस थोड़ी ही देर में कितना कुछ महसूस हो जाएगा ,,,,आप सोच भी नहीं सकते,,,,,,देखिये न ?
मेरी एक कप कॉफ़ी ने मुझे इन एक डेढ़ घंटों में कितना कुछ महसूस करा दिया,,,,,,जो है उसका भी,,,जो था उसका भी ,, ,,,जो रहेगा उसका भी ,,,,



खैर !!!!!!!!!
बातें तो और भी हैं ,,,,,,,लेकिन अभी के लिए बस इतना ही,,,,तब तक आप भी अपने किसी दोस्त के साथ कुछ पल गुजारिये,,,,और अगर अभी कोई दोस्त मौजूद न हो तो ,,,,,,आप भी मेरी तरह किसी कॉफ़ी को अपना दोस्त बनाइए ,,,,,,और कुछ याद करिये कुछ भूल जाइये,,,,,,
तब तक के लिए अपना ख्याल रखिये ,,,,,,और गर इस ब्लॉग को पढ़ते वक़्त आपने चाय या कॉफ़ी नहीं पी है,,,,तो जाइए जनाब ,,,,,पीजिये,,,,
…………………………………………एक कप कॉफ़ी''

Wednesday 16 April 2014

..suno mujhe tum fir yaad aayi.!

सुनो  मुझे तुम फिर याद आयी  .,

शाम ढले इक चिट्ठी आयी .…

पता तुम्हें मालूम नहीं था,. 

फिर मुझ तक कैसे पहुँचायी ,,,सुनो मुझे तुम फिर याद आयी ..

खत में मेरा नाम लिखा है.,

साथ में ये पैगाम लिखा है…

 तुम भी मुझे भूल न पायी ,.

याद तुम्हें भी मेरी आयी .,

आगे तुम कुछ यूँ लिखती हो.,

तुम्हे पता है कब-कब आयी ???

जब-जब तुमने चाँद को देखा .,

जब भी तुमने शमा जलायी ,..

जब-जब तुम बारिश में भीगी,. 

और तब भी जब भीग न पायी .,,याद तुम्हे भी मेरी आयी ,.

जब-जब तुमको माँ ने डाँटा,. 

और तब भी जब आँख भर आयी .,

जब-जब तुम उलझन में थी.,

और जब भी  तुमको नींद न आयी .,

सुबह भी आयी,. शाम भी आयी,. 

जब-जब तुमने चाय बनायी,. 

याद तुम्हें भी मेरी आयी ,.याद तुम्हे भी मेरी आयी,… 

सारे जग से बात छुपायी,,पर खुद को फुसला न पायी 

तुम भी मझे भूल न पायी,,..

 पता तुम्हें उस खत से मिला,

जो गंगा में तुम बहा न पायी,

और फिर ये चिट्ठी भिजवायी ,…

… 

.... .... आज पुरे सताईस बरस हो गए तुम्हें मेरे पास से गए हुए,,

……………अभी  मैंने फिर चाय बनायी थी,सोचा था.…,तुम्हें याद करते-करते पीयूंगा,,याद तो किया ,पर चाय फिर ठंढी हो गयी.,,,और अब चाय पीने का मन नहीं है.... क्योंकि ,तुमने खत में लिखा है,,

................ 'अपना ख्याल रखना

और ये मेरी …सातवीं चाय थी.