Saturday 30 January 2016

इस बार...तुम' कुछ ग़लत' आये हो...

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इस बार...तुम' कुछ ग़लत' आये हो...
शायद वक़्त से..बहुत पहले,
या फिर..बेवक्त' आये हो..
...पर इस बार..तुम' कुछ ग़लत ' आये हो...
***
.,अब क्या,?
.,अब क्यूँ,?
.,किसलिए..?,और किसके लिए आये हो.,?
अब...कुछ भी तो नहीं मेरे पास.,
जो था'.,वो' दिया तो था तुम्हें पिछली बार.,
पर उसे' तो तुम कहीं छोड़' आये हो..
गए साल कहीं अख़बार  में पढ़ी थी ये ख़बर,
औरों की तरह तुम भी वो पुराना दिल'...कहीं तोड़' आये हो...
...इस बार...तुम कुछ ग़लत 'आये हो ..
***
न..ना.!
बुरा मत मानो..!
ये शिक़ायत' नहीं.,बस एक रवायत' है.,
जो मुझे निभानी है..तुम्हारी बदौलत..
क्योंकि तुम.,मेरी बला से .,इसका इक सिरा',..कब का....,कहीं भूल' आये हो..!
...इस बार तुम कुछ...
***
जाओ..!
वापस चले जाओ..!
इस बार जो आये हो तो.,हमने तुम्हें माफ़ किया.,
अपना ज़ख़्मी दिल हमने अपनी तरफ से साफ़ किया..
..लेकिन,.अब इस राह मत आना.!
बहुत रोई हैं...ये आँखें.,
इन्हें अब और...मत रुलाना.!
थोड़ा वक़्त तो लगता ही है...सम्भलने में .,
यूँ ही ..बेवक्त आकर फिर से..,मत गिरना .,!
..जाओ और अब मत आना..!
***
..अच्छा इक बात पूछूं.,?
,बताओगे ..?
अब तो तुम्हें ये कसम देते भी नहीं बनती.,
,कि कुछ भी नहीं छुपाओगे..
...
.,क्या? हम तुम्हें अब., ज़रा भी याद नहीं आते .,
या अब तुम गंगा., उस पार नहीं जाते..
.,क्या? हमारी तुम्हें., कहीं भी याद नहीं आती .,
या घाटों कि वो सीढ़ियाँ., तुम्हें अब नहीं बुलाती ..
.,क्या तुम अब., रातों में चैन से सोते हो.?
या मेरी तरह., तुम भी तन्हा बैठ छत पर रोते हो..
.,क्या चाँद अब तुम्हारी., खिड़की पे नहीं आता.,
या अब तुम्हें वो उतना., पहले सा नहीं भाता ..
.,क्या,? रास्तों के मोड़., तुम्हें अब रोकते नहीं .,
या अब तुम इन मसलों पे., ज़्यादा सोचते नहीं ..
.,क्या,? अब तुम पीली-पतंगें.,  नहीं उड़ाते .,
या उड़ाते तो हो., पर पेंच अब नहीं लड़ाते ..
.,क्या,? अब मुझे देखने का., तुम्हारा मन नहीं होता .,
या अब तुम्हारे दिल में., वो सूनापन नहीं होता ..
.,क्या,? अब तुम मेरा कहीं,. इंतज़ार नहीं करते..
या अब मेरे लिए अपना वक़्त., बरबाद नहीं करते ..
.,क्या,? अब हम तुम्हारे,. लायक़ नहीं रहे .,
या इश्क़ में तुम अब,. अलानाहक़ नहीं रहे ...
...
....
***
तो कहो,.!
..अब क्या कहें.,?
.,कि.,
..इसे ख़त्म' कर दो...
यहाँ घाटों में एक घाट ..हरिश्चन्द्र' भी है,
वहीँ इक रस्म' के तहत., मुझे भी भस्म' कर दो..
..बहुत कर ली मुहब्बत' इस जहाँ' में ,
...मुझे अब ले चलो' और दफ्न' कर दो...
..
***
..ये पहले भी कही,. और फिर से यह दोहरा' रहे हैं..
जहाँ छोड़ा था तुमने,. हम वहीँ' से आ रहें..
,.सो अब बेहतर यही होगा,. कि तुम ख़ुद को ये 'समझाओ .,
हम अब वैसे' नहीं,. जैसा हमे तुम छोड़' आये हो..
बहुत से मोड़' आते हैं..,सफ़र ये' है ही कुछ ऐसा .,
उन्हीं में तुम भी अपने नाम' का,. इक मोड़' लाये हो..
....
......
.......बुरा मत मानना लेकिन,. सदाक़त ही यही है..,
.......बुरा मत मानना लेकिन,. हकीक़त भी यही है...

                             कि,तुम इस बार कुछ गलत आये हो.,
                              .,शायद वक़्त से.,
बहुत पहले.,
                                या फिर,.

                            ..,बेवक़्त आये हो..
                           पर .,.इस बार जो आये हो...तुम '
                                 .कुछ ग़लत'आये हो...
                        

                         ,पर .,.इस बार जो आये हो...तुम '
                                .कुछ  ग़लत'आये हो...